Sunday 10 June 2012

हम बह गए...

      

इक नाकाम नदिया की धार हमसे क्यों बह चली,
क्या हम थे वो पिघले हुए स्वरुप में
सायद हमी  में कुछ दोष था !!
जो खवाब थे वो खवाब थे, सपनो में रह गए,
गलती  अपनी थी, जो  उनको अपना बनाना चाहा !!!
जो कमी थी उसको कभी न बतलाया ,
शायद कारण यही था की हम बह गए...!!!!!



   जीवन धारा  है बहती सी रहती है
   मुस्कुरा के अपनी जिंदगानी कुछ कहती है..
   उसके दिल की आवाज  सुनो,
   उसमे सच छुपा है, वही हकीकत ह सपनो की...
   इक राह जिन्दगी से मिल जाये, उसमे चलो।
   क्यों उन गलियों में भटके भटके  रहते हो
   जिन गालियों में आंधी अन्धकार ही फैला है।
   जबरन करना,  गड्ढे में गिरना,,,
   शायद कारण यही था की हम बह गए...!!!!!


मेरे सपने क्यू  मुझ तक ही सिमट कर रह गए,,???
आरजू सब की होती है  पर सच नहीं







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