Monday 22 October 2012

प्यार.... दूर फलक तक

प्रेमी- इक खामोसी है दूर कही,,,
और लब्ज है थम गये,,

आसमां तलक है जिसका बसेरा
कह कह के कुछ खो गये..

उसी राह पे जाना था पर
अब ठीठूर के रह गये

प्रेमिका- तुम न थे ....थी केवल तनहाईयां...
टटोलते राहो को,,,,सितारे भी थम गये

प्रेमी- और मै खाडा सब देखता रहा
बस यही भूल थी...

प्रेमिका- दूर तलक कि तुम इक बार तो पलटोगे
आओगे पास मेरे
थामोगे मेरा हाथ
पर बस यही भूल थी

प्रेमी-मै पलटा था
चाहता था पास तुम्हारे आना
हाथ भी थामना चाहता  था
पर भूल वही हो गई,
बस अब इक लब्ज
आवाज दे दो कही से
मै भाग चला आऊंगा,,,
पर......
न जवाब मिला ..!

प्रेमिका- मैने पढी थी चाहत तुम्हारी......
तुम्हारी अनकहि आंखो से.........
पर क्या करती मजबूर थी.....
तुम्हारे इन्तजार मे

ना आवाज आई..!!

प्रेमी- तुम्हारे शब्द सुनने को...
बस मजबूरीथी
आवाज भी दी थी मैने ....

प्रेमिका- पता भी था तुम भी इन्तजार कर रहे हो मेरा
पर ज्योत्सना हू....
दाग कि सार्थकता समझती हूं
नाम से जुडा जो है मेरे
तुम आओ और थाम लो हाथ मेरा.....

प्रेमी- क्य कहू बस ये खेल है
कभी कमल सा खिलता है
तो कभी जोयत्सना सा चमकता है
कितना मैने हाथ बढाया
पर हर बार खाली रहा
मेरा हाथ.....

प्रेमिका- मै साथ हू तुम्हारे.....आंखो से...
अनतर्मन तक...
कुछ न कुछ तो कमी होगी ही...
तभी तुम खाली हाथ ही लौट गये

प्रेमी- शायद दर्द तुम्हारा,
भूल गया था
अपने में,  मै मग्न था
कभी ना समझी मजबूरी..
बस उसी बात कि सजा मिली
और खाली हाथ हम लौट आये...

प्रेमी- पर अब तुम सुन लो
बस माफ हमे कर दो
जितने दर्द दिये है
सब बापस कर दो
हमारा हाथ पकड लो
साथ चलेंगे दूर फलक तक.....

प्रेमिका- माफी न मांगो मुझसे....
क्यूकि मै तो कभी खाफा थी ही नही तुमसे.....
तब बात कुछ और थी,,,
रिश्ते कुछ और थे,,,,
नासमझ हो के हम लडा करते थे.....
पर अब तो हर बात अच्छी लगती है.....
हर खाफा प्यार होता है.....
मै हमेशा से हू तुम्हारी....
फिर भी आओ ये लो हाथ मेरा...थाम लो....
और ले चलो दूर फलक....

प्रेमी-आ गई लौट के मेरी खुशी,
अब मै हू तुम हो
और फलक तक संग संग चलेंगे,,..!!!!!!!!!!!!

अंश आर्य तिवारी 'कमल'

आशियाना...

 कोई आशियाना ढूढता है
कोई आसियाने पे रहता है
बस बात है तकदीर की।।।।।